This is the one written by Mirza Ghalib..Yeh na thi hamari kismat ki visaal-e-yaar hota
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।
तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूठ जाना
कि खुशी से मर न जाते ग़र ऐतबार होता।
कहूँ किससे मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता।
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।
Monday, May 22, 2006
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1 comment:
my favortie sher:
tere vaade par jiye hum to ye jaan jhooth jaana ...
bcs i took a long time to understand this sher ;-)
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